स्वामी जी के छाया चित्र पर माल्यार्पण कर श्रधांजलि अर्पित की गई।

भरत देवांगन शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय खरोरा में आज विवेकानंद जयंती के अवसर पर स्वामी जी के छाया चित्र पर माल्यार्पण कर श्रधांजलि अर्पित की गई। इस अवसर पर विद्यालय की प्राचार्य रजनी मिंज ने कहा कि स्वामी विवेकानंद जी आधुनिक भारत के एक महान चिंतक, दार्शनिक, युवा संन्यासी, युवाओं के प्रेरणास्त्रोत और एक आदर्श व्यक्तित्व के धनी थे ।अपने उद्बोधन में उपप्राचार्य हरीश देवांगन ने कहा की विवेकानंद सदैव युवा में जोश लाने का,प्रेरित करने का काम करते थे वे कहा करते थे कि
उठो मेरे शेरो, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो , तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो , तुम तत्व नहीं हो , ना ही शरीर हो , तत्व तुम्हारा सेवक है तुम तत्व के सेवक नहीं हो।
रासेयो कार्यक्रम अधिकारी शाहिना परवीन ने जीवन परिचय बताते हुए अपने उदबोधन में कहा कि
स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी सन् 1863 को कलकत्ता में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। पिता विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। विश्वनाथ दत्त पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखते थे। वे अपने पुत्र नरेन्द्र को भी अँग्रेजी पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढर्रे पर चलाना चाहते थे। परन्तु उनकी माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थीं। नरेन्द्र की बुद्धि बचपन से ही बड़ी तीव्र थी और परमात्मा को पाने की लालसा भी प्रबल थी।
स्वामी विवेकानंद ने 16 वर्ष की आयु में कलकत्ता से एंट्रेस की परीक्षा पास की और कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि प्राप्त की । स्वामी विवेकानंद (नरेन्द्र) नवम्बर,1881 ई. में रामकृष्ण से मिले और उनकी आन्तरिक आध्यात्मिक चमत्कारिक शक्तियों से नरेन्द्रनाथ इतने प्रभावित हुए कि वे उनके सर्वप्रमुख शिष्य बन गये। और स्वामी विवेकानंद ने 1 मई 1897 में कलकत्ता में रामकृष्ण मिशन और 9 दिसंबर 1898 को कलकत्ता के निकट गंगा नदी के किनारे बेलूर में रामकृष्ण मठ की स्थापना की। 4 जुलाई 1902 को बेलूर में रामकृष्ण मठ में उन्होंने ध्यानमग्न अवस्था में महासमाधि धारण कर प्राण त्याग दिए।
संगीता नायक ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि
स्वामी विवेकानन्द भारतीय संस्कृति एवं हिन्दू धर्म के प्रचारक-प्रसारक एवं उन्नायक के रूप में जाने जाते हैं। विश्वभर में जब भारत को निम्न दृष्टि से देखा जाता था, ऐसे में स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर, 1883 को शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में हिंदू धर्म पर प्रभावी भाषण देकर दुनियाभर में भारतीय आध्यात्म का डंका बजाया। 11 सितंबर 1893 को विश्व धर्म सम्मेलन में जब उन्होंने अपना संबोधन ‘अमेरिका के भाइयों और बहनों’ से प्रांरभ किया तब काफी देर तक तालियों की गड़गड़ाहट होती रही। स्वामी विवेकानंद के प्रेरणात्मक भाषण की शुरुआत “मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनों” के साथ करने के संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था।
श्वेता शर्मा ने भी सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि
स्वामी विवेकानंद जी ने हमेशा युवाओं पर अपना ध्यान केंद्रित किया और युवाओं को आगे आने के लिए आह्वान किया । स्वामी विवेकानंद ने अपनी ओजस्वी वाणी से हमेशा भारतीय युवाओं को उत्साहित किया है । स्वामी विवेकानंद के विचार सही मार्ग पर चलते रहने कीप्रेरणा देते हैं।
सहायक कार्यक्रम अधिकारी योगेंद्र त्रिपाठी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि
युवाओं के प्रेरणास्त्रोत, समाज सुधारक स्वामी विवेकानंद ने युवाओं का आह्वान करते हुए कठोपनिषद का एक मंत्र कहा था:-
“उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ।”
उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक अपने लक्ष्य तक ना पहुँच जाओ।असाइनमेंट जमा करने आये छात्रों के साथ आज विवेकानंद जयन्ती जोश के साथ मनाया गया।पूर्वा वर्मा ने विवेकानंद का चित्र उकेर कर तो तृप्ति साहू ने रंगोली के माध्यम से विवेकानंद को याद किया।लिशु वर्मा,रेणुका साहू, डिशा देवांगन तृप्ति साहू, रेणुका साहू,श्वेता यादव झरना साहू,पलक चंद्राकर ने निबंध प्रतियोगिता में भाग लिया।मयंक यादव,जीत सक्सेना, गिरिजाशंकर यादव,पंकज वर्मा,लक्की वर्मा,हिमांशु गिलहरे विनायक वर्मा,जॉनी डहरिया ने स्वच्छता अभियान में सहयोग किया।इस अवसर पर विद्यालय की प्राचार्य रजनी मिंज, उपप्राचार्य हरीश देवांगन, व्याख्याता शाहिना परवीन ,संगीता नायक, महेंद्र साहू,श्वेता शर्मा, सुनीता सिंह,डोमार यादव, रजनी त्रिपाठी, जयंती साहू,चमेली खरे, अलका मिंज ,योगेंद्र त्रिपाठी, गीतांजलि पान,निरूपा साहू ,जे बंजारे, बी महिलांगे सहित प्रवीण पाटिल उपस्थित थे।
