भड़हा के बजरंग मंदिर परिसर में चल रही भागवत कथा में कथावाचक पंडित सुखदेव शर्मा ने आज की भागवत कथा

खरोरा;-
जड़ भरत चरित्र।
इंद्र को गुरु अपमान का फल और मुक्ति।
अजामिल चरित्र।
गजेंद्र मोक्ष।
समुद्र मंथन।
वामन चरित्र।
राजा बलि की कथा सुनाई।
उन्होंने कहा ज्यादा मोंह ही मनुष्य का पतन का कारण बनता है। जड़ भरत ने ईश्वर से प्रेम किया, और एक हिरण शावक से भी प्रेम किया, हिरण के बच्चे से इतना प्रेम बढ़ गया की जड़ भरत महाराज ईश्वर को भूल गए और शावक के प्रति प्रेम अगाध हो गया। एक दिन हिरण का बच्चा बिछड़ गया तो भरत हिरण हिरण कहते-कहते मृत्यु को प्राप्त हो गए, मरने की समय मति जैसी होती है वही मनुष्य का गति बनता है भरत महाराज हिरण योनि को प्राप्त किए। और हिरण योनि में भी उसने ईश्वर को नहीं भूला, ईश्वर की प्राप्ति करने के लिए सिर्फ मानव ही नहीं अपितु समस्त प्राणी ईश्वर को प्राप्त कर सकता है बशर्ते प्रेम सच्चा हो।
अजामिल ब्राह्मण वेदपाठी था ।परंतु गलत संगति के कारण उसने अपना जिंदगी बर्बाद कर डाला। एक वेश्या से प्रेम किया और अनेकों पुत्र पैदा किए, एक बार संतों की टोली उनके घर में आकर के रुका उन्होंने वैश्या को कहा तुम अपने गर्भ के बच्चे का नाम नारायण रखना। जब अजामिल ब्राह्मण की मरने की घड़ी आई तो उसी नारायण नामक बच्चे को अंतर्मन से अजामिल ने पुकारा और अजामिल की मुक्ति हो गई। अंतर मन की आवाज को ही प्रभु सुनते हैं।
राजा बलि दान शिरोमणि था ।वह इतना दान करता था कि लोगों को खटकने लगे। स्वयं श्री हरि ने वामन बटुक का रूप धारण किया, और राजा बलि के सर्वस्व को दान में ले लिया। जब बलि ने दान पूर्ण नहीं कर पाया तो भगवान ने नागपाश में राजा बलि को बांध दिया। उनकी पत्नी बिंद्यावली ने राजा बलि को समर्पण करने को कहा। ज्यौ ही राजा बलि ने हरि के सामने सर को झुकाया श्री हरि शंख चक्र गदा पद्म लेकर प्रकट हो गए और राजा बलि को अमरता का वरदान दिया। अति सर्वत्र वर्जित कहा गया है। श्लोक ््अति सुन्दरैन वै सीता, अति गर्वैण रावणा।
अति दानात बर्लिर बद्धौ, अति सर्वत्र वर्जयेत।।
इस अवसर पर श्रीमती कौशल्या चंद्राकर ,शत्रुहन , श्रीमती ईश्वरी चंद्राकर , लक्ष्मण , सुशीला चंद्राकर यमन ,दीक्षा चंद्राकर ,लक्ष्मीकांत चंद्राकर सहित बड़ी संख्या में ग्रामीण उपस्थित रहे।
