भागवत महापुराण कथा में रुक्मणी कृष्ण का विवाह

खरोरा :—लक्ष्मी नारायण मंदिर प्रांगण में चल रही भागवत कथा में सातवें दिन कथा प्रसंग में कथा वाचक पंडित सुरेश कुमार शर्मा ने कहा कि
गुरु सांदीपनी के आश्रम में 64 कलाओं की विद्या प्राप्त करना।
कृष्ण जी का मथुरा प्रवेश ,कंस वध।
जरासंध शिशुपाल उद्धार।
कृष्ण जी का द्वारिका नगरी में वास।
बलराम जी और रेवती का विवाह।
रुक्मणी मंगल और भगवान की अनन्य विवाह।
प्रद्युम्न का जन्म और उद्धव प्रसंग।
सम्बरासुर का वध।
64 दिन में चौसठ कलाओं की विद्या कृष्ण और बलराम ने गुरु सांदीपनी के आश्रम में प्राप्त किया। जो भगवान स्वयं वेद का रूप है ।उसे भला विद्या प्राप्त करने की क्या आवश्यकता। मगर दुनिया वालों को बताया बिना गुरु के ज्ञान पाना असंभव है ।इसलिए प्रभु ने गुरु के आश्रम में जाकर गुरु की गरिमा बढ़ाई।
भौंमासूर दैत्य बड़ा दुष्ट और पापी था ,उसने सोलह हजार एक सौ कुंवारी कन्याओं को बंदी बना करके रखा था। और चाहता था ,बीस हजार की संख्या में कन्या होने पर एक साथ विवाह करेगा। कृष्ण को जब पता चला तो रुकमणी आदि आठ पटरानियों के होते हुए भी प्रभु ने सभी कन्याओं का एक साथ पानी ग्रहण किया। कृष्ण की यही मंसा थी, यदि इन कन्याओं को बाहर छोड़ दूंगा, तो सभी कन्याएं दूषित हो जाएगी। माता पिता इनको पास रखेंगे नहीं, इसलिए भगवान ने सब को अपना लिया।
कामदेव को भगवान शंकर ने अपनी तीसरी नेत्र की ज्वाला से भस्म कर दिया था। भगवान शिव ने कामदेव को वरदान दिया था, जब कृष्ण जी का अवतार होगा।तब कामदेव तुम कृष्ण के पुत्र के रूप में प्रद्युम्न नाम से अपना शरीर पाओगे। आज भगवान कृष्ण ने अनंग कामदेव को अंग प्रदान किया और प्रद्युम्न के रूप में पुत्र रूप में अपना लिया।
ब्रज की गोपियां कृष्ण की प्रेम में रंग चुकी थी। इधर भगवान का मित्र उद्धव को ज्ञान का घमंड हो गया था। भगवान ने प्रेम की पाती देकर उद्धव को ब्रजभूमि भेजा। उद्धव ने ब्रज की बालाओं को ज्ञान देना चाहा और कृष्ण की महिमा सुनाए। पहले तो गोपियां उद्धव को ही कृष्ण समझ रही थी। उद्धव जब ज्ञान देना चाहा तो गोपियां अपनी प्रेम की दुहाई देकर उद्धव को परास्त कर दी। और उद्धव भी प्रेम में रंग गए।
उद्धव को जब प्रेम का नशा चढ़ा तो पागल की भांति ब्रजभूमि से मथुरा आया। कृष्ण ने कहा ्् ये तो प्रेम की बात है उद्धव ,बंदगी तेरे बस की नहीं है। यहां सर देके होते हैं सौदे, आशिकी इतनी सस्ती नहीं है।
कृष्ण ने यशोदा को वचन दिया था मैया मैं एक दिन तुमसे मिलने गोकुल जरूर आऊंगा। यशोदा यही आस लगाई थी ,मेरा कनुआ एकदिन जरूर मुझसे मिलने आएगा। यशोदा और नंद बाबा की आंखों की आंसू की धारा नदी रूप में बहते बहते यमुना नदी में मिल गई थी। यह है माता पिता के प्रेम और वात्सल्य ,भक्त और भगवान का साक्षात गरिमा मयी मिलन का संदेश।