क्या शीर्ष नेतृव की “जी हजूरी” छत्तीसगढ़ स्वभिमान से बढ़ कर हैं..?- इमरान

राजनांदगांव /3 जून/ अविभाजित मध्यप्रदेश में जिले से कांग्रेस के कद्दावर विधायक इमरान मेमन जो इस वक्त हाशिये पर हैं। ने अपनी खामोशी तोड़ते हुवे पार्टी के बेतुके निर्णय के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की हैं जिससे ऐसा प्रतीत होता हैं कि राजनांदगांव जिले में भी कांग्रेस के G 23 ग्रुप का आगाज हो रहा हैं।
छत्तीसगढ़ से राज्यसभा के लिये छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के पैराशूट प्रत्याशियों को लेकर खुज्जी के पूर्व विधायक इमरान मेमन ने तल्ख टिप्पणी कर राज्य से लेकर दिल्ली तक खलबली मचा दी हैं। उनका कहना है कि बड़ी विचित्र हैं ये छत्तीसगढ़िया स्वभिमान की लड़ाई उन्होंने कहा कि जब राज्य सभा मे जीत निश्चित होती हैं तब शीर्ष नेतृत्व बाहर के लोगों को (छत्तीसगढ़) यहां थोप देता हैं। और जब पराजय निश्चित होती हैं तो छत्तीसगडीया को बलि का बकरा बनाया जाता हैं। उन्होंने कहा कि लेखराम साहू को राज्यसभा चुनाव लड़वाना और उनकी तय शुदा हार इसका हास्यापद उदाहरण हैं। और जब जीत निश्चित हो तो बाहरी उम्मीदवार मोहसिना किदवई को पुनः राज्यसभा भेज दिया जाता हैं परंतु छत्तीसगढ़िया छाया वर्मा को शीर्ष नेतृत्व दोबारा मौका नहीं देते हैं क्यो…? जब हारना तय था तब क्यो शीर्ष नेतृत्व ने लेखराम साहू की जगह किसी बाहरी और अपने चहेते राष्ट्रीय नेता की छत्तीसगढ़ से चुनाव लड़ने..? जब आप मोहसिना किदवई को दोबारा भेज सकते हैं तो छाया वर्मा को क्यो नही…? क्या शीर्ष नेतृत्व की “जी हजूरी” छत्तीसगढ़ स्वभिमान से बढ़ कर हैं..? या छत्तीसगढ़िया स्वभिमान सिर्फ एक राजनीतिक नारा मात्र है…? जब पराजय निश्चित हो तब भी छत्तीसगढ़िया मैदान में डटा रहा और जब जीत निश्चित हैं तो शीर्ष नेतृत्व कहता हैं कि पार्टी ने बहुत कुछ दिया है अब वक्त है पार्टी को देने का 4 में से तीन सदस्य परदेसिया! क्या ऐसे ही गढ़ेगे नवा छत्तीसगढ़…? ज्ञात रहे कि कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में उतर प्रदेश के कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला और बिहार की रंजीत रंजन को राज्यसभा के लिये प्रत्याशी बनाया है। एडवोकेट के टी तुलसी दिल्ली से है।
क्या भुपेश बघेल भी नाराज हैं शीर्ष नेतृत्व के इस कदम से ?
सूत्रों का कहना है राज्यसभा के लिये छत्तीसगढ़ से आयातित उम्मीद वारों को लेकर प्रदेश सरकार के मुखिया बघेल भी नाराज हैं। सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री भुपेश बघेल गिरीश देवांगन और विनोद वर्मा को राज्यसभा में भेजना चाहते थे लेकिन हाईकमान के आगे उनकी एक नहीं चली।
देवेन्द्र कुमार की रिपोर्ट***