खतरे में आजादी अब मौन पर भी पाबंदी…….

बजरंग सेन की रिपोर्ट-
महासमुंद प्रशासनिक अतिवाद के खिलाफ पत्रकार आनंद साहू द्वारा मौन व्रत किए जाने की अनुमति की मांग को लेकर प्रस्तुत आवेदन प्रशासन ने कोर्ट के संभावित अवमानना की आशंका में निरस्त कर दिया। ठीक ही हुआ वरना आनंद साहू के मौन व्रत करने से जलजला आ जाता और प्रशासनिक अतिवाद सुचारिता के साथ ही जलजले में समाकर नेस्तनाबूद हो जाता । वैसे उच्च न्यायालय द्वारा जारी स्थगन आदेश के बाद भी प्रशासन ने मीडिया हाउस को निर्ममता से ढहा दिया और लोकतंत्र के चौथे पाए की साख को भी तार-तार कर दिया। तब न्यायालय की अवमानना का कोई प्रश्न उत्पन्न नहीं हुआ लेकिन पत्रकार आनंद के मौन रहने के निर्णय मात्र से ही प्रशासन तंत्र की निद्रा भंग हो गई और उसे न्यायालय की अवमानना का डर सताने लगा है तो यह कोई बड़ी बात नहीं है। वैसे भी सत्र 2022 के शुरू होते ही राज्य सरकार के खिलाफ जिस तेजी से असंतोष और आक्रोश मुखर होना शुरू हुआ वह मार्च अंत तक परवान चढ गया जिससे राज्य सरकार की मुले चूले हिल गई और उसे जन आंदोलन और अन्य आंदोलन को कुचलने के लिए पूर्व अनुमति को अनिवार्य करने जैसा दांव खेलना पड़ गया। बहरहाल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अंग्रेजी हुकूमत के लिए उपवास का सहारा लेते थे तो अंग्रेजी सल्तनत की नींद उड़ जाए करती थी अब आजाद भारत में मौन धारण करना भी प्रशासन की सेहत बिगड़ने के लिए काफी है। तभी तो आनंद साहू को चुप रहने की इजाजत देने से भी मना कर दिया गया है। अगर आनंद साहू कलम चलाना छोड़ कर चुप रहने की जगह माइक लेकर बोलने लग जाए तो शायद भूकंप आ सकता है। बहर हाल आज 1 मई को पत्रकार आनंद साहू ने पूर्व घोषणा अनुसार अपने निवास में ही रह कर प्रातः 10:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक मौन व्रत का पालन किया। कल वे पुनः अनुमति लेने आवेदन प्रस्तुत करेंगे।
सभार
चिराग की चिंगारी